सार
बेलछी हत्याकांड क्या था, जिसने देश की राजनीतिक परिदृश्य को बदलने में अहम भूमिका निभाई? आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी की लगभग खत्म मानी जाने वाली राजनीति के लिए यह हत्याकांड कैसे राजनीतिक संजीवनी बन गया? ‘बिहार के महाकांड’ सीरीज की दूसरी कड़ी में आज इसी बेलछी हत्याकांड की की कहानी…
विस्तार
देश के लोकतंत्र पर लगा आपातकाल का धब्बा हट चुका था। नए सिरे से हुए चुनाव में विपक्षी दलों को मिलाकर बनी जनता पार्टी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई। राज्यों की विधानसभा के लिए भी नए सिरे से चुनाव हुए। कुछ राज्यों को छोड़कर ज्यादातर राज्यों में भी जनता पार्टी को भारी सफलता मिली। जनता बेहद कौतूहल से नई सरकार की ओर देख रही थी। लेकिन, सत्ता में आने बाद इस दल के लिए कई चुनौतियां सामने आने लगीं। अलग-अलग विचारधारों को मिलाकर बने दल में यही अलग-अलग विचार टकराव की वजह बनने लगे। वहीं, दूसरी ओर देश के अलग-अलग हिस्सों में जातीय हिंसा की घटनाएं बढ़ने लगीं। ऐसी ही एक घटना बिहार के बेलछी में हुई। बेलछी की इस घटना ने 1977 के चुनाव की खलनायिका रहीं इंदिरा गांधी को दुनियाभर की मीडिया की सुर्खियां बना दिया। कुछ विशेषज्ञ तो यहां तक कहते हैं कि इस घटना ने इंदिरा की सत्ता वापसी में बहुत बड़ी भूमिका निभाई।
बेलछी हत्याकांड की पृष्ठभूमि क्या थी?
अरुण सिन्हा की 2011 में आई किताब ‘नीतीश कुमार एंड द राइज ऑफ बिहार’ के मुताबिक, 1970 के दशक में बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में जब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) और समरस समाज पार्टी (एसएसपी) ने पहुंच बनाई तो यहां का सामाजिक ताना-बाना धीरे-धीरे बदलने लगा। इन पार्टियों के नेतृत्व में 1970 के मध्य तक मजदूरों के तबके ने उच्च जातियों से आने वाले जमींदारों और जमीन पर कब्जा करने वालों के खिलाफ आवाज बुलंद करनी शुरू कर दी। इसके चलते एक खूनी संघर्ष की शुरुआत हुई।