Thursday, October 23, 2025
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भाई मक्खन शाह लुबाना व भाई लक्खी शाह बंजारा जयंती समारोह आयोजित 

भाई मक्खन शाह लुबाना व भाई लक्खी शाह बंजारा जयंती समारोह आयोजित 

 मक्खन शाह लुबाना द्वारा गुरु तेगबहादुर की पहचान करना भारतीय इतिहास का महत्त्वपूर्ण मोड़ था : डाॅ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री,

कोई भी लुबाना समाज पर शोध करना चाहे तो बाबा मक्खन शाह लुबाना फाउंडेशन, चण्डीगढ़ इसके लिए हर सहायता प्रदान करने के लिए तैयार : भगवान सिंह लुबाना, अध्यक्ष

चण्डीगढ़ / पंचकूला : हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, पंचकूला के महाराजा दाहिर सेन सभागार में भाई लक्खी शाह बंजारा व भाई मक्खन शाह लुबाना की जयंती के उपलक्ष्य में दस गुरु पंरपरा में बंजारा समाज का योगदान विषय पर विचार-गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के आरम्भ में हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के कार्यकारी उपाध्यक्ष, डाॅ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री, अध्यक्ष, मुख्य वक्ता डाॅ. जसवंत सिंह, पूर्व प्राचार्य, एन.जे.एस.ए. राजकीय काॅलेज, कपूरथला, भगवान सिंह लुबाना, अध्यक्ष, बाबा मक्खन शाह लुबाना फाउंडेशन, चंडीगढ़, मनजीत सिंह, सदस्य सचिव, अकादमी, डाॅ. चितरंजन दयाल सिंह कौशल, निदेशक, संस्कृत प्रकोष्ठ व हरपाल सिंह, निदेशक, पंजाबी प्रकोष्ठ ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की।
कार्यक्रम की शुरुआत गुरदास सिंह दास ने गुरुवाणी के शबद: होऊं कुर्बाने जाऊं मेहरबाना, होऊं कुर्बाने जीऊं/होऊं कुर्बाने जाऊं तिनाके, लैण जो तेरा नाओं से की गई।
इस अवसर पर अकादमी के कार्यकारी उपाध्यक्ष, डाॅ. कुलदीप चन्द्र अग्निहोत्री ने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में कहा कि भाटों की बहियों में पूरा इतिहास दर्ज था लेकिन अब यह परम्परा समाप्त हो गई है। अंग्रेजों द्वारा सोची समझी रणनीति के अन्तर्गत बहियों जैसे इतिहास के स्त्रोतों को अप्रमाणिक घोषित कर दिया गया। लगभग 1000 ई. के आसपास तुर्कों के आक्रमण शुरू हुए, इन आक्रमणों में पराजित होने के पश्चात पश्तूनों एवं कुछ अन्य समाजों ने धर्म परिवर्तन कर लिया, लेकिन क्षत्रियों ने धर्म परिवर्तन नहीं किया। इसके फलस्वरूप उनका आन्तरिक एवं बाहरी माईग्रेशन शुरु हुआ। घुमन्तु होने के कारण उन्होंने व्यापार का धंधा अपनाया। क्षत्रिय मन से मुगलों के विरूद्ध थे इसलिए महाराष्ट्र में महाराज शिवाजी के साथ मिलकर मुगलों का सामना किया तथा इसी तरह देश के अन्य भागों में वे मुगलों के खिलाफ लड़े। मक्खन शाह लुबाना ने गुरु तेगबहादुर की पहचान की। यह भारतीय इतिहास का महत्त्वपूर्ण मोड़ था। गुरु तेगबहादुर की पैदल यात्राओं से घबराकर औरंगजेब ने गुरु तेगबहादुर को समाप्त करने की योजना बनाई। औरंगजेब की सबसे बड़ी चिंता गुरुओं के पास परिवर्तित मुसलमानों का वापस आना थी। बंजारा समाज के योगदान को रेखांकित करने के लिए अभी और अधिक शोध की जरूरत है।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में पधारे डाॅ. जसवंत सिंह प्रसिद्ध इतिहासकार एवं पूर्व प्राचार्य, एन.जे.एस.ए. राजकीय काॅलेज, कपूरथला ने अपने वक्तव्य में दस गुरु परंपरा में बंजारा समाज के योगदान की परम्परा का विस्तार से उल्लेख करते हुए बताया कि बंजारे काफिले के साथ गुरु नानक देव जी के साथ भी चलते थे। बाबा मक्खन शाह लबाना अंतर्राष्ट्रीय व्यापारी थे। बाबा मक्खन शाह लबाना का गुरु परम्परा को जीवंत रखने में बहुत बड़ा योगदान रहा। अपने वक्तव्य में  उन्होंने संत बाबा प्रेमसिंह के शिक्षा के प्रचार-प्रसार में योगदान को भी रेखांकित किया।
दूसरे मुख्य वक्ता के रूप में पधारे भगवान सिंह लुबाना, अध्यक्ष, बाबा मक्खन शाह लुबाना फाउंडेशन, चंडीगढ़ ने कहा कि वह ऐसा दौर था जब सिख समाज दुविधा में था, बड़े चमत्कारिक ढंग से उन्होंने 9वें गुरु जी को प्रकट किया। कोई भी लुबाना समाज पर शोध करना चाहे तो फांउडेशन इसके लिए हर सहायता प्रदान करने के लिए तैयार है।
कार्यक्रम में पधारे जसमेर सिंह ने बताया कि कैसे श्रीलंका के राजा सिख समाज से प्रभावित होकर सिख बन गए थे। उन्होंने बताया कि पूरे हिन्दुस्तान में बड़े-बड़े किले, कुएँ व छतरियाँ लुबाना समाज द्वारा ही बनाई गई थी।
कैथल से पधारे पुरोहित हुकम सिंह ने बंजारा एवं लुबाना समाज के इतिहास पर वंश परम्परा के अनुसार अपने विचार प्रकट किए। उन्होंने बंजारा समाज से सम्बन्धित 500 वर्ष से अधिक पुरानी भट्ट बही दिखाते हुए लुबाना समाज का इतिहास प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम में मनजीत सिंह, सदस्य सचिव, अकादमी व डाॅ. चितरंजन दयाल सिंह कौशल, निदेशक, संस्कृत प्रकोष्ठ ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
कार्यक्रम के समापन सत्र में श्री हरपाल सिंह, निदेशक, पंजाबी प्रकोष्ठ ने समारोह में पधारे सभी अतिथियों/श्रोताओं का आभार व्यक्त किया। उन्होंने सिख समाज से अपील की कि हमें अपना संकुचित दायरा छोड़कर एक व्यापक समाज के निर्माण के लिए काम करना चाहिए ताकि सिख समाज और अधिक पल्लवित हो सके। कार्यक्रम का मंच संचालन रघबीर सिंह ने किया।

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