सार
बिहार विधानसभा चुनावों में 2005 के बाद से क्या-क्या हुआ है? किस तरह राज्य में अलग-अलग पार्टियों की सीटें और वोट प्रतिशत लगातार ऊपर-नीचे हुए हैं? इसके अलावा कैसे कम सीटें और वोट पाने के बावजूद नीतीश कुमार सत्ता में बने रहे हैं? आइये जानते हैं…
विस्तार
बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। इससे पहले राज्य में सियासी बयानबाजी जारी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सेहत भी चुनावी मुद्दा बनती दिख रही है। हाल ही में आए राष्ट्रगान के दौरान के मुख्यमंत्री के वीडियो पर जमकर बवाल हो रहा है। बीते बीस साल से नीतीश बिहार में सत्ता का पर्याय बने हुए हैं। 2005 से जारी नीतीश राज अब तक जारी है।
सात महीने में बदल गया बिहार
चुनाव बाद किसी सरकार का गठन नहीं होने के चलते राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया। अक्तूबर-नवंबर में फिर चुनाव हुए। महज सात महीने बाद हुए इस चुनाव में एनडीए को स्पष्ट बहुमत मिल गया। जदयू को 88 और भाजपा को 55 सीटें मिलीं। इस तरह एनडीए 143 सीट जीतकर सत्ता में आया और नीतीश कुमार राज्य के नए मुख्यमंत्री बने। लालू यादव की राजद को महज 54 सीट से संतोष करना पड़ा। वहीं, फरवरी में किंगमेकर बनी लोजपा 29 से घटकर 10 सीट पर आ गई। कांग्रेस को इस बार केवल नौ सीट पर जीत मिली।
2010-15: सुशासन बाबू का तमगा पाया, भाजपा से गठबंधन तोड़ा
अपने दूसरे पूर्ण कार्यकाल में नीतीश कुमार ने बिहार के मूलभूत ढांचे के विकास पर ध्यान देना शुरू किया। टूटी-फूटी सड़कों की मरम्मत से लेकर उनके चौड़ीकरण का काम और इसके बाद बिहार की बिजली व्यवस्था को सुधारा। इसी कार्यकाल में उनकी ‘सुशासन बाबू’ वाली छवि बनी। यही कार्यकाल था जब नीतीश के गठबंधन बदलने की शुरुआत हुई।
जून 2013 में उन्होंने भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया। 2014 का लोकसभा चुनाव उन्होंने अकेले लड़ा। इस चुनाव में जदयू को महज दो सीट से संतोष करना पड़ा। लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद नीतीश ने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दी और जीतन राम माझी राज्य के मुख्यमंत्री बने। हालांकि, 2015 के विधानसभा चुनाव से कुछ समय पहले नीतीश वापस मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हो गए।
2015 का विधानसभा चुनाव
2015 के विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश और लालू दशकों बाद साथ आए। जदयू-राजद-कांग्रेस ने मिलकर महागठबंधन बनाया। इस गठबंधन ने 243 में से 178 सीटें हासिल कीं। राजद-जदयू ने बराबर 101-101 सीटें बांटीं, वहीं कांग्रेस को 41 सीटें मिलीं। जहां राजद 80 सीट जीतकर सबसे बड़ा दल बना। जदयू को 71 सीटें मिलीं, वहीं कांग्रेस 27 सीट जीतने में सफल रही। नीतीश फिर से मुख्यमंत्री बने। वहीं, लालू यादव के दोनों बेटे उनकी कैबिनेट का हिस्सा बने। लालू के छोटे बेटे तेजस्वी को डिप्टी सीएम बनाया गया।
एनडीए को 58 सीटों से संतोष करना पड़ा। भाजपा को 53, लोजपा और रालोसपा को दो-दो और जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी आवामी मोर्चा (हम) को एक सीट ही मिली। लेफ्ट फ्रंट को सिर्फ तीन सीटें ही मिलीं। दूसरी ओर सपा, राकांपा, जाप जैसी पार्टियों का सोशलिस्ट सेक्युलर मोर्चा एक भी सीट नहीं जीत सका। तीन निर्दलीय भी जीतने में सफल हुए।
महागठबंधन के दलों की बात करें तो राजद को 75, कांग्रेस को 19, भाकपा-माले को 12, भाकपा को 2 और माकपा को 2 सीटें मिलीं। इस चुनाव में कभी एनडीए का हिस्सा रही राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) ने अलग तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश की। इस गठबंधन में ओवैसी की एआईएमआईएम, मायावती की बसपा और उपेंद्र कुशवाहा की खुद की पार्टी थी। इस गठबंध में शामिल एआईएमआईएम को पांच, बसपा को एक सीट पर जीत मिली। वहीं, रालोसपा के सभी 99 उम्मीदवार बुरी तरह हार गए। अन्य पार्टियों में लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) को सिर्फ एक सीट मिली। एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार को जीत मिली।