Wednesday, October 22, 2025
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हरियाणा में डॉक्टर अब कैपिटल अक्षरों में लिखेंगे पर्चे, हाईकोर्ट के आदेश पर स्वास्थ्य विभाग सख्त

चंडीगढ़, 19 सितम्बर:Priyanka Thakur

हरियाणा में अब डॉक्टरों को मरीजों को दी जाने वाली दवाइयां और जांचें साफ व बोल्ड अक्षरों में लिखनी होंगी। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश के बाद स्वास्थ्य विभाग ने सभी सिविल सर्जनों को पत्र जारी कर इस नियम को कड़ाई से लागू करने के निर्देश दिए हैं।

स्वास्थ्य विभाग का यह आदेश सरकारी और निजी दोनों अस्पतालों पर लागू होगा। जब तक कंप्यूटर से पर्चे लिखने का सिस्टम पूरी तरह से लागू नहीं हो जाता, तब तक डॉक्टरों को दवाइयों और जांचों को कैपिटल लेटर्स (बड़े अक्षरों) में ही लिखना होगा।

हाईकोर्ट का आदेश

दरअसल, अगस्त में एक केस की सुनवाई के दौरान पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग को निर्देश दिया था कि डॉक्टरों द्वारा लिखे गए पर्चे स्पष्ट और पढ़ने योग्य होने चाहिए। कोर्ट ने कहा कि मरीज और फार्मासिस्ट के लिए दवाइयों के नाम और जांच आसानी से समझ आने चाहिए।

हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि मेडिकल पर्चे और जांच रिपोर्ट्स, चाहे सरकारी अस्पतालों में हों या निजी संस्थानों में, उन्हें या तो कैपिटल लेटर्स में लिखा जाए या फिर टाइप/डिजिटल रूप में मरीजों को उपलब्ध कराया जाए।

मरीजों के अधिकार पर जोर

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि मरीजों को अपनी बीमारी और इलाज के बारे में जानने का पूरा अधिकार है। यह अधिकार उनके जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) का एक अहम हिस्सा है। हाईकोर्ट ने नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) को निर्देश दिया कि मेडिकल कॉलेजों में छात्रों को साफ-सुथरी लिखावट के महत्व के बारे में सिखाया जाए।

स्वास्थ्य विभाग की कार्रवाई

स्वास्थ्य विभाग ने सभी जिलों में सिविल सर्जनों को आदेश दिए हैं कि वे डॉक्टरों को जागरूक करें और इस व्यवस्था को लागू करने के लिए नियमित निगरानी करें। जिला स्तर पर मीटिंग आयोजित की जाएगी ताकि डॉक्टरों को इस आदेश का पालन करने के लिए प्रेरित और निर्देशित किया जा सके।

निजी अस्पतालों पर भी लागू

निजी अस्पतालों में इस नियम को लागू कराने की जिम्मेदारी इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) को दी गई है। विभाग ने स्पष्ट किया है कि चाहे सरकारी अस्पताल हो या निजी, दोनों में मरीजों के हित को ध्यान में रखते हुए यह व्यवस्था कड़ाई से लागू की जाएगी।

कोर्ट की सख्ती

सुनवाई के दौरान जस्टिस ने पाया कि एक डॉक्टर द्वारा लिखी गई मेडिकल लीगल रिपोर्ट (MLR) बिल्कुल समझ में नहीं आ रही थी। इस उदाहरण को देखते हुए कोर्ट ने साफ-सुथरी लिखावट को अनिवार्य बनाने पर जोर दिया।

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