Tuesday, October 21, 2025
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डिजिटल सुधारों से पंजाब के वित्तीय प्रबंधन में पारदर्शिता और दक्षता: हरपाल सिंह चीमा

चंडीगढ़, 5 अक्टूबर:Priyanka Thakur
पंजाब के वित्त मंत्री एडवोकेट हरपाल सिंह चीमा ने कहा कि राज्य सरकार ने ख़ज़ाना और लेखा निदेशालय (डी.टी.ए) के माध्यम से वित्तीय प्रशासन को पूरी तरह डिजिटल और पारदर्शी बनाने की दिशा में बड़े सुधार किए हैं। उन्होंने बताया कि इन पहलों के परिणामस्वरूप पंजाब ने वित्तीय वर्ष 2024-25 में 450 करोड़ रुपये का प्रोत्साहन प्राप्त किया है, जबकि अब 2025-26 में एस.ए.एस.सी.आई योजना के तहत 350 करोड़ रुपये हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है।

वित्त मंत्री ने कहा कि डी.टी.ए द्वारा लागू की गई नई तकनीकी प्रणालियाँ — एस.एन.ए-स्पर्श, पेंशनर सेवा पोर्टल (पी.एस.पी) और ऑडिट मैनेजमेंट सिस्टम (ए.एम.एस) — वित्तीय जवाबदेही, पारदर्शिता और सेवा डिलीवरी में क्रांतिकारी सुधार लाने में सफल रही हैं।

उन्होंने बताया कि एस.एन.ए-स्पर्श प्रणाली ने पब्लिक फाइनेंशियल मैनेजमेंट सिस्टम (पी.एफ.एम.एस), राज्य आई.एफ.एम.एस और भारतीय रिज़र्व बैंक के ई-कुबेर प्लेटफॉर्म को जोड़ा है, जिससे ख़ज़ाने की नकदी तरलता बढ़ी है और बैंकों में पड़ी अनुपयोगी राशि में कमी आई है।

चीमा ने कहा कि इसी दिशा में, राज्य ने पेंशनर सेवा पोर्टल (पी.एस.पी) विकसित किया है जो पेंशनरों को पेंशन केस ट्रैकिंग, शिकायत निवारण, जीवन प्रमाणपत्र अपडेट और ई-पीपीओ जैसी डिजिटल सुविधाएँ देता है। उन्होंने कहा कि इस पोर्टल से बैंक और ख़ज़ाना विभाग के बीच समन्वय में गति आई है और पेंशन वितरण की पारदर्शिता बढ़ी है।

उन्होंने बताया कि नया ऑडिट मैनेजमेंट सिस्टम (ए.एम.एस) ऑडिट रिपोर्टों की वास्तविक समय की निगरानी की सुविधा देता है और प्रशासनिक सचिव स्तर पर नियमित समीक्षा बैठकों के माध्यम से जवाबदेही सुनिश्चित करता है। डी.टी.ए के भविष्य के रोडमैप में अकाउंटेंट जनरल की ऑडिट रिपोर्टों को भी शामिल करने की योजना है।

वित्त मंत्री ने कहा कि इन पहलों में “नॉन-ट्रेज़री मॉड्यूल” भी जोड़ा गया है, जो वन और लोक निर्माण विभागों में जमा कार्यों के लिए लेखा प्रक्रिया को सरल बनाता है। इसके अलावा, सभी बिलों के लिए ई-वाउचर प्रणाली लागू की गई है जिससे स्टेशनरी, यात्रा और भौतिक दस्तावेज़ों से जुड़ी लागतों में उल्लेखनीय कमी आई है।

हरपाल सिंह चीमा ने कहा, “ये सुधार केवल सॉफ़्टवेयर अपग्रेड नहीं हैं, बल्कि यह हमारे वित्तीय ढांचे में बुनियादी बदलाव हैं — जिससे यह सुनिश्चित हो कि हर रुपये का हिसाब रखा जाए और जनता के हित में उसका प्रभावी उपयोग हो।

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