चंडीगढ़ में हरियाणा के लिए अलग विधानसभा भवन का सपना फिर अधर में लटक गया है।
केंद्र सरकार ने चंडीगढ़ प्रशासन को निर्देश देते हुए इस प्रस्ताव को फिलहाल रोक दिया है। इसके बाद राज्य में राजनीतिक हलचल बढ़ गई है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और यूटी के मुख्य सचिव को स्पष्ट कर दिया है कि इस प्रोजेक्ट को आगे न बढ़ाया जाए। वहीं, हरियाणा कांग्रेस ने इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग की है।
क्यों अटका प्रस्ताव?
वर्तमान में पंजाब और हरियाणा, चंडीगढ़ स्थित संयुक्त विधानसभा भवन साझा करते हैं। यह भवन 2016 से यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों में शामिल है, इसलिए इसमें किसी तरह का नया निर्माण या बदलाव प्रतिबंधित है।
हरियाणा ने चंडीगढ़ प्रशासन से नई विधानसभा के लिए आईटी पार्क के पास 10 एकड़ जमीन मांगी थी, जिसकी अनुमानित कीमत 640 करोड़ रुपये थी। इसके बदले में हरियाणा ने पंचकूला में जमीन देने का प्रस्ताव दिया, पर वह ईको सेंसिटिव जोन में होने के कारण अस्वीकार कर दी गई।
2029 से पहले तैयार करना चाहता था हरियाणा
मौजूदा विधानसभा में सिर्फ 90 विधायकों की बैठने की क्षमता है, जबकि 2028 में संभावित परिसीमन के बाद सीटें 126 या अधिक हो सकती हैं। इसलिए सरकार 2029 से पहले नई विधानसभा बनाना चाहती थी।
पंजाब का विरोध जारी
पंजाब सरकार और आप नेताओं ने चंडीगढ़ की जमीन हरियाणा को देने पर कड़ा विरोध जताया है। उनका कहना है कि —
“चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी है, इसलिए जमीन हस्तांतरण अस्वीकार्य है।”
कांग्रेस का सीधा हमला
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भाजपा सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा—
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अलग विधानसभा की जमीन नहीं मिल पाई
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हरियाणा को उसके हिस्से का एसवाईएल का पानी भी नहीं मिल रहा
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चंडीगढ़ को लेकर सरकार की नीति स्पष्ट नहीं
कांग्रेस ने मुख्यमंत्री से तत्काल सर्वदलीय बैठक बुलाने और हरियाणा की अलग राजधानी के लिए केंद्र से फंड मांगने की अपील की है।


