हरियाणा सरकार की नई पॉलिसी पर विवाद: किसानों के लिए कुछ भी नहीं – आप नेता अनुराग ढांडा
हरियाणा सरकार की ओर से लागू की जा रही नई भूमि नीति को लेकर राज्य में राजनीतिक विवाद गहराता जा रहा है। आम आदमी पार्टी (AAP) के नेता अनुराग ढांडा ने इस पॉलिसी को किसानों के खिलाफ और बिल्डरों के पक्ष में बताया है। उनका कहना है कि सरकार ने जिस तरीके से यह नीति तैयार की है, उसमें किसानों के हितों की अनदेखी की गई है।
अनुराग ढांडा ने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) सरकार ने कुछ चुनिंदा बिल्डरों को फायदा पहुँचाने के उद्देश्य से यह पॉलिसी बनाई है। उन्होंने कहा कि दस्तावेज़ में स्पष्ट किया गया है कि किसानों को उनकी ज़मीन का अधिकतम दाम सर्कल रेट के तीन गुना तक दिया जाएगा। यह प्रावधान दिखने में भले ही राहतकारी लगे, लेकिन असलियत में किसानों को उनकी ज़मीन का सही मूल्य नहीं मिल पाएगा।
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार बिल्डरों को प्रोत्साहित कर रही है कि वे किसानों से सर्कल रेट पर ज़मीन खरीदें और फिर वही ज़मीन सरकार को सौंप दें। इस प्रक्रिया में बिल्डरों को सीधा फायदा होगा जबकि किसान मजबूरी में अपनी ज़मीन गँवा देंगे।
छोटे किसानों पर संकट
आप नेता ने विशेष रूप से छोटे किसानों की स्थिति को लेकर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि जिनके पास 10 एकड़ से कम ज़मीन है, उनके पास तो भविष्य में कुछ भी नहीं बचेगा। उनकी ज़मीन ले ली जाएगी लेकिन उनकी रोज़ी-रोटी, पुनर्वास और वैकल्पिक रोज़गार के लिए कोई व्यवस्था इस पॉलिसी में नहीं की गई है।
गांवों के किसान केवल अपनी ज़मीन पर ही निर्भर रहते हैं। ऐसे में जब ज़मीन ही छिन जाएगी तो परिवार के लिए जीविका का संकट खड़ा हो जाएगा। यह नीति सीधे तौर पर ग्रामीण किसानों को दर-बदर करने वाली है।
पुनर्वास का कोई प्रावधान नहीं
ढांडा ने आरोप लगाया कि सरकार ने किसानों के पुनर्वास को लेकर कोई रोडमैप तैयार नहीं किया है। जमीन पर काम करने वाले मजदूर और भूमिहीन परिवार भी प्रभावित होंगे, लेकिन उनके लिए भी कोई विकल्प नीति में नहीं है। यह साबित करता है कि सरकार केवल बिल्डरों और कॉरपोरेट हितों को ध्यान में रखकर फैसला ले रही है।
स्टांप ड्यूटी पर कोई राहत नहीं
उन्होंने यह भी कहा कि किसानों को किसी तरह की टैक्स छूट या स्टांप ड्यूटी में राहत नहीं दी गई है। सामान्य तौर पर जब ज़मीन अधिग्रहित होती है, तो प्रभावित परिवारों को किसी न किसी तरह की आर्थिक छूट दी जाती है। लेकिन इस पॉलिसी में ऐसा कुछ नहीं है। इससे साफ है कि किसानों की चिंता सरकार की प्राथमिकता में नहीं है।